अर्थ- जो कोई भी धूप, दीप, नैवेद्य चढाकर भगवान शंकर के सामने इस पाठ को सुनाता है, भगवान भोलेनाथ उसके जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश करते हैं। अंतकाल में भगवान शिव के धाम शिवपुर अर्थात स्वर्ग की प्राप्ति होती है, उसे मोक्ष मिलता है। अयोध्यादास को प्रभु आपकी आस है, आप तो सबकुछ जानते हैं, इसलिए हमारे सारे दुख दूर करो भगवन।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
श्रीरामचरितमानस धर्म संग्रह धर्म-संसार एकादशी
अर्थ: हे प्रभु वैसे तो जगत के नातों में माता-पिता, भाई-बंधु, नाते-रिश्तेदार सब होते हैं, लेकिन विपदा पड़ने पर कोई भी साथ नहीं देता। हे स्वामी, बस आपकी check here ही आस है, आकर मेरे संकटों को हर लो। आपने सदा निर्धन को धन दिया है, जिसने जैसा फल चाहा, आपकी भक्ति से वैसा फल प्राप्त किया है। हम आपकी स्तुति, आपकी प्रार्थना किस विधि से करें अर्थात हम अज्ञानी है प्रभु, अगर आपकी पूजा करने में कोई चूक हुई हो तो हे स्वामी, हमें क्षमा कर देना।
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।।
पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥